Thursday, June 18, 2009

वक्त का पहिया

वक्त का पहिया मंथर गति से
चलता है और चलता रहेगा
पहचान वक्त की तेज़ दौड़ को
वरना पीछे रह जाएगा,
कहते हो के है वक्त तुम्हारी मुट्ठी में
फिसलेगा रेत जैसा और कुछ रह जाएगा
वक्त की मार से कोई नही बच पाया
संभल जा वरना बाद में पछतायेगा
( एक प्रयास किया है बहुत दिनों बाद ...आप की प्रतिक्रिया का इंतज़ार है )

Friday, June 5, 2009

आज बहुत दिनों बाद ब्लॉग लिख रहा हूँ, कुछ समझ ही नही आया की क्या लिखे, या यूँ कहे कि मन में अजब सी बेचैनी थी कि कुछ करने का मन नही किया..... आज सोचा कि ब्लॉग देखे और कम से कम दुसरो कि रचनाएँ पढ़ के कुछ राहत लें.... वाकई आप सब ने बहुत अच्छा लिखा है .....
अलग अलग टिपण्णी देने के बजाय सामूहिक टिपण्णी दे रहा हूँ ... काहिली के लिए माफ़ी छत्ता हूँ :
  • रंजना जी आपकी कवितायें वाकई बहुत अच्छी हैं.... पता नही मैं ऐसा कब लिख पाऊंगा?
  • अजित जी की रचनाएँ तो हमेशा की तरह जानकारी से परिपूर्ण होती हैं ।
  • कुश जी, मार्क जी आप की रचनाएँ भी बहुत सुंदर बन पड़ी हैं
  • दिगंबर जी आपकी कविताओं और ग़ज़लों पर टिपण्णी करने की मेरी सामर्थ्य नही है ... बस एक ही शब्द है ... अभूतपूर्व
  • कंचन जी कश्मीर की वादियों में घूमती आपकी कहानी बहुत अच्छी लगी
  • अनिल जी हर बार की तरह इस बार भी आप छा गए ....

एक बार फ़िर अपनी काहिली के लिए क्षमा चाहता हूँ ...