आज तुम पास नहीं हो मेरे,
माना के दूर हो मुझसे,
छू नहीं सकता तुम्हारी रेशमी जुल्फें,
नहीं भर सकता तुम्हे अपने आगोश मे,
लेकिन महसूस कर सकता हूँ तुम्हारी
साँसों कि खुशबू अपने बहुत करीब,
देख सकता हूँ तुम्हारी आँखों कि चमक
और दांतों कि धवल पंक्ति कि कौंध
जब भी चलती है पुरवाई,
लगता है तुमने अपनी जुल्फें लहराई हैं
जब भी कोयल बोलती है बाग़ में
लगता है तुमने मुझे आवाज लगाई,
काश एक बार तुम सामने आ जाओ,
बंद कर लूँगा तुम्हे अपनी पलकों मे,
दूर नहीं जाने दूंगा फिर कभी खुद से
बस एक बार तुम आ जाओ
Monday, March 30, 2009
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