Thursday, June 18, 2009

वक्त का पहिया

वक्त का पहिया मंथर गति से
चलता है और चलता रहेगा
पहचान वक्त की तेज़ दौड़ को
वरना पीछे रह जाएगा,
कहते हो के है वक्त तुम्हारी मुट्ठी में
फिसलेगा रेत जैसा और कुछ रह जाएगा
वक्त की मार से कोई नही बच पाया
संभल जा वरना बाद में पछतायेगा
( एक प्रयास किया है बहुत दिनों बाद ...आप की प्रतिक्रिया का इंतज़ार है )

3 comments:

  1. sahi likha hai..wakt ki maar se koi anhi bach pata...samay rahte hi sambhal hoga...

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  2. सचमुच बहुत दिनों के बाद कुछ लिखा है आपने.सुन्दर रचना.

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  3. bilkul yatharth ....wakt ko wakt rahte hi pahchan le to behtar hoga

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