Saturday, September 12, 2009

माँ और भगवान्

'भगवान् हर किसी के पास हर समय नही पहुँच सकता, इसलिए उसने माँ बनायी ' ये संवाद शाहरुख़ खान की प्रसिद्ध फ़िल्म "कल हो न हो " का है बहुत ही सटीक और दिल को छू लेने वाला, अगर अपनी जिन्दगी के हर पहलु में झाँक के देखा जाए तो माँ ही है जो हमारी भगवान् है आपके दुःख में आपसे ज्यादा दुखी और खुशी में आपसे ज्यादा खुश होती है माँ जो आप की आंखों में आंसू नही देख सकती चाहे आप की एक हँसी के लिए उसे कितने ही कष्ट उठाने पड़े माँ आपके बिना बोले ही जान जाती है कि आप क्या चाहते हैं
कल मेरे मोबाइल पर एक मेसेज आया
"जब हम छोटे थे और बोल भी नही पाते थे, तब माँ हमारे बिना बोले ही हमारी सारी बातें समझ लेती थी, अब जब कि हम कितना बोलते हैं तब उसी माँ से कहते हैं कि तुम कुछ नही समझती हो" सच में हम कितना बदल जाते हैं , ये सोचने वाली बात है
हमे कोशिश करनी चाहिए कि हम ऐसा कुछ न करे कि हमारे उस भगवान् को कोई दुःख पहुचे वरना मन्दिर मस्जिद में जाने से कुछ नही होगा
कबीर दास जी का एक दोहा है जो शायद इस सन्दर्भ में मुझे ठीक लगा (हालांकि ये माँ से सम्बंधित नही है )

दुनिया ऐसी बावरी पत्थर पूजन जाए
घर कि चक्की कोई न पूजे जिसका पीसा खाए

सच में अपने भगवान् का निरादर कर के अगर किसी को लगता है कि पत्थर के भगवान् को पूज के सारे पाप धुल जायेंगे तो शायद ये उस इंसान कि सब से बड़ी भूल होगी

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