एक बार फ़िर उसका दिल दुखाया,
फ़िर ख़ुद को उस से पराया बताया,
सुजा ली उसने आँखे रोते रोते ,
फ़िर मैं अपनी गलती पर पछताया
Saturday, April 11, 2009
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भावनाएं जो दिल के किसी कोने से फूट पड़ती हैं पहाड़ी झरने की तरह, जिन पर कोई विराम नहीं है, और जो आयु पर आलाम्बित नहीं हैं| काव्यकृति एक कोशिश है इन्ही भावनाओं को व्यक्त करने की| एक छोटा सा प्रयास इन भावनाओं को कागज़ पर उतारने का|
ऐसा ही होता है मेरे दोस्त ..इश्क है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...ये इश्क नहीं आसां, गालिब भी कह गये हैं.
ReplyDeleteसही कहा अनिल जी और वंदना जी आपने ...
ReplyDeleteये इश्क नही आसान बस इतना समझ लीजे
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है
वंदना जी आप की वो पंक्ति हम ने पूरी कर दी