अलसाई आंखों से,
सुबह सुबह जब खिड़की से,
झाँक के बाहर देखा,
एक सपना
जो पलकों से टूटकर,
उस चाँद की झीनी रौशनी
से छूट कर ,
नर्म घास पर चमकती ओस
की एक बूँद जैसा,
मेरे सामने आ गया
और जीने के नए आयाम सिखा गया
भावनाएं जो दिल के किसी कोने से फूट पड़ती हैं पहाड़ी झरने की तरह, जिन पर कोई विराम नहीं है, और जो आयु पर आलाम्बित नहीं हैं| काव्यकृति एक कोशिश है इन्ही भावनाओं को व्यक्त करने की| एक छोटा सा प्रयास इन भावनाओं को कागज़ पर उतारने का|
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