ये घटना भी उसी से सम्बंधित है ......उस बार जब गर्मी की छुट्टी में नानी जी के घर गए तो उनके यहाँ एक नई भैंस आ गई थी तो अब सबके पास चराने के लिए अपनी अपनी भैंस थी.......
शाम का वक्त था और हमे भैंस चराने की सूझी..... उनके घर के सामने ही एक बड़ा तालाब था जो बेचारा सूरज की तेज़ गर्मी बर्दाश्त नही कर सका और सूखने के कगार पर आ गया था, इस कारण उस में कीचड की मात्रा अधिक हो गई थी
तो भैंस की जंजीर का छल्ला अपने हाथ में पहन के बड़ी शान से भैस को ले कर हम चल पड़े, पीछे से मामा के लड़के ने भैंस को एक डंडा मार दिया......भैंस ने आव देखा न ताव सीधे तालाब की तरफ़ भागी....और हम भैंस के साथ खींचते जा रहे थे.... भैंस ने तालाब के इस किनारे से एंट्री मारी और दूसरे किनारे से निकली..... इस यात्रा में भैंस ने हमे अच्छी खासी कीचड़ छठा दी, जैसे तैसे भैंस शांत हुई और हमे किसी तरह सब ने निकाला....इस यात्रा के बाद हम कीचड में पूरी तरह लिपट चुके थे और काले काले भूत बन गए थे.....
अब भी जब कभी उनके घर जाते हैं तो सोच कर बड़ी हँसी आती है.... मामी जी तो अब भी पूछ लेती हैं "भइया भैंस चराने नही ले जाओगे".....
बचपन के दिन भी क्या दिन थे
ReplyDeleteउड़ते फिरते तितली की तरह.....
नानी का गाँव । जन्म भी ननिहाल में ही हुआ । पढ़ाई भी वही हुई । भैस भी चराई ।खूब मट्ठा भी पिया । मीठे की भेली चुराई । डंडें भी खाया । खूब दोस्त भी बनाए । सब के सब लफंगें। लफंगों की लिस्ट में नंबर वन भी आया । जिंदगी के सुनहले दिन ननिहाल में ही बीतें । आज फ़िर नानी का गाँव याद आया ....