Tuesday, April 14, 2009

सपना


अलसाई आंखों से,
सुबह सुबह जब खिड़की से,
झाँक के बाहर देखा,
एक सपना
जो पलकों से टूटकर,
उस चाँद की झीनी रौशनी
से छूट कर ,
नर्म घास पर चमकती ओस
की एक बूँद जैसा,
मेरे सामने आ गया
और जीने के नए आयाम सिखा गया

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