Saturday, April 11, 2009

गलती

एक बार फ़िर उसका दिल दुखाया,
फ़िर ख़ुद को उस से पराया बताया,
सुजा ली उसने आँखे रोते रोते ,
फ़िर मैं अपनी गलती पर पछताया


3 comments:

  1. ऐसा ही होता है मेरे दोस्त ..इश्क है

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  2. बहुत सुन्दर...ये इश्क नहीं आसां, गालिब भी कह गये हैं.

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  3. सही कहा अनिल जी और वंदना जी आपने ...

    ये इश्क नही आसान बस इतना समझ लीजे

    इक आग का दरिया है और डूब के जाना है

    वंदना जी आप की वो पंक्ति हम ने पूरी कर दी

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