Saturday, September 12, 2009
जिन्दगी का श्राप
लगता है जैसे कोई श्राप हो
लपेट लिया है स्याह चादर में
जैसे रौशनी कोई अभिशाप हो ,
अब मुझे जीने को मत कहना
मृत्यु को जीवन संगिनी बनाया है
अब तो उसके साथ ही प्रेम लगाया है
विष का ये प्याला,
छलकी हैं कुछ बूंदे जिस से
अब और बूंदे छलक कर
न मिल जाए कहीं धूल में
इसलिए प्याले को अपने होठों से लगाया है
माँ और भगवान्
कल मेरे मोबाइल पर एक मेसेज आया
"जब हम छोटे थे और बोल भी नही पाते थे, तब माँ हमारे बिना बोले ही हमारी सारी बातें समझ लेती थी, अब जब कि हम कितना बोलते हैं तब उसी माँ से कहते हैं कि तुम कुछ नही समझती हो" सच में हम कितना बदल जाते हैं , ये सोचने वाली बात है
हमे कोशिश करनी चाहिए कि हम ऐसा कुछ न करे कि हमारे उस भगवान् को कोई दुःख पहुचे वरना मन्दिर मस्जिद में जाने से कुछ नही होगा
कबीर दास जी का एक दोहा है जो शायद इस सन्दर्भ में मुझे ठीक लगा (हालांकि ये माँ से सम्बंधित नही है )
दुनिया ऐसी बावरी पत्थर पूजन जाए
घर कि चक्की कोई न पूजे जिसका पीसा खाए
सच में अपने भगवान् का निरादर कर के अगर किसी को लगता है कि पत्थर के भगवान् को पूज के सारे पाप धुल जायेंगे तो शायद ये उस इंसान कि सब से बड़ी भूल होगी
Saturday, August 29, 2009
सन्नाटा
शायद इसी अनुभव को बोध कहते हैं, जब हमें अपने भीतर छुपे सत्य का आभास होता है शायद यही आभास एक प्रेमी को प्रेम करने में भी होता है जब आप अनकही बातों को भी सुन लेते हैं और हवाओं में भी संगीत सुनाई देता है.... जब साथी में कोई दोष नही दीखता है ... शायद इसी लिए प्रेम को ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग बताया गया है राधा और मीरा दोनों के प्रेम अवस्था में भले ही अन्तर हो पर दोनों का लक्ष्य तो एक ही था प्रेम की परिभाषा भले ही बदल जाए पर भाव वही रहता है
Friday, August 28, 2009
गुलाब के फूल
Saturday, August 22, 2009
कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती
बच्चन साहब की ये कविता बहुत ही प्रेरणादायी है ....और हमेशा ही मेरी प्रेरणाश्रोत रही है ....
लहरों से डर कर नौका पार नही होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती
नन्ही चींटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना गिर कर चढ़ना न अखरता है
मेहनत उसकी बेकार हर बार नही
होती कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती
डुबकियां सिन्धु में गोताखोर लगाता है
जा कर खाली हाथ लौट कर आता है
मिलते न सहज ही मोती गहरे पानी में
बढ़ता दूना विश्वास इसी हैरानी में
मुठ्ठी उसकी खाली हर बार नही
कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती
असफलता एक चुनौती है स्वीकार करो
क्या कमी रह गई देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो नींद चैन की त्यागो तुम
संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किए बिना ही जय जय कार नही
होती कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती
Wednesday, August 19, 2009
भूलना चाहता हूँ
Thursday, June 18, 2009
वक्त का पहिया
Friday, June 5, 2009
अलग अलग टिपण्णी देने के बजाय सामूहिक टिपण्णी दे रहा हूँ ... काहिली के लिए माफ़ी छत्ता हूँ :
- रंजना जी आपकी कवितायें वाकई बहुत अच्छी हैं.... पता नही मैं ऐसा कब लिख पाऊंगा?
- अजित जी की रचनाएँ तो हमेशा की तरह जानकारी से परिपूर्ण होती हैं ।
- कुश जी, मार्क जी आप की रचनाएँ भी बहुत सुंदर बन पड़ी हैं
- दिगंबर जी आपकी कविताओं और ग़ज़लों पर टिपण्णी करने की मेरी सामर्थ्य नही है ... बस एक ही शब्द है ... अभूतपूर्व
- कंचन जी कश्मीर की वादियों में घूमती आपकी कहानी बहुत अच्छी लगी
- अनिल जी हर बार की तरह इस बार भी आप छा गए ....
एक बार फ़िर अपनी काहिली के लिए क्षमा चाहता हूँ ...
Wednesday, May 6, 2009
मौसम की पहली बारिश
Friday, April 24, 2009
परोपकार
Saturday, April 18, 2009
खुदा तेरा इन्साफ
छोटी गलती कि इतनी बड़ी सज़ा
और पाप करने वाले को
कर दिया तूने माफ़
जो रखती तेरे कितने व्रत उपवास
छीन ली तुमने उस से जीने कि आस
नही चाहा उसने किसी का बुरा
उसके सपनो को तुमने
क्यों रहने दिया अधूरा
लोगों के विश्वास से ऐसे मत खेल
वरना तू सिर्फ़ पत्थर ही कहलायेगा
फ़िर कोई तेरे दर पे
सर झुकाने भी नही आएगा
Friday, April 17, 2009
Short Story
" Sir you have got overnight success and became a hero. What would you say about that?"
Ford looked at him, gave a smile and said "Yes my dear friend I got overnight success and became hero, But to get this overnight success I had to spend hundreds of sleepless nights"
Moral of the story " People have very short term memory they cant remember how much efforts you have given to get success but they remember only immediate thing."
यहाँ के लोग
इतनी बड़ी सज़ा देते हैं लोग
कितनी आसानी से यहाँ
अपनों को भुला देते हैं लोग,
बाद मुद्दत के मिले और
पहचानने से भी गुरेज़ किया
क्या ऐसे भी अपनों को ठुकरा देते हैं लोग
Tuesday, April 14, 2009
बचपन की यादें
ये घटना भी उसी से सम्बंधित है ......उस बार जब गर्मी की छुट्टी में नानी जी के घर गए तो उनके यहाँ एक नई भैंस आ गई थी तो अब सबके पास चराने के लिए अपनी अपनी भैंस थी.......
शाम का वक्त था और हमे भैंस चराने की सूझी..... उनके घर के सामने ही एक बड़ा तालाब था जो बेचारा सूरज की तेज़ गर्मी बर्दाश्त नही कर सका और सूखने के कगार पर आ गया था, इस कारण उस में कीचड की मात्रा अधिक हो गई थी
तो भैंस की जंजीर का छल्ला अपने हाथ में पहन के बड़ी शान से भैस को ले कर हम चल पड़े, पीछे से मामा के लड़के ने भैंस को एक डंडा मार दिया......भैंस ने आव देखा न ताव सीधे तालाब की तरफ़ भागी....और हम भैंस के साथ खींचते जा रहे थे.... भैंस ने तालाब के इस किनारे से एंट्री मारी और दूसरे किनारे से निकली..... इस यात्रा में भैंस ने हमे अच्छी खासी कीचड़ छठा दी, जैसे तैसे भैंस शांत हुई और हमे किसी तरह सब ने निकाला....इस यात्रा के बाद हम कीचड में पूरी तरह लिपट चुके थे और काले काले भूत बन गए थे.....
अब भी जब कभी उनके घर जाते हैं तो सोच कर बड़ी हँसी आती है.... मामी जी तो अब भी पूछ लेती हैं "भइया भैंस चराने नही ले जाओगे".....
सपना
Saturday, April 11, 2009
गलती
दिखा एक चेहरा जाना पहचाना,
जी में आया आवाज दे के बुला लूं,
हाथ पकड़ के अपने पास बिठा लूं,
खो चुके हो तुम ये अधिकार
नहीं हो तुम अब इसके हक़दार
जिसको सुधारने का
नहीं दिया जिन्दगी ने मौका
जिसके अब तक दे रहा हूँ सजा खुद को,
सोचा था जो होता है
शायद अच्छा है ,
पर इसमें क्या अच्छा है
ये अब तक नहीं जाना
जब कहा तुमसे
अब ख़त्म हो गया हमारा साथ
शायद नहीं रह सकता मेरे हाथो में तेरा हाथ
तब कितना रोई थी तुम
ये हसीं वादियाँ (कॉलेज का पहला दिन)
कॉलेज देख के लगा किसी गुरुकुल में आ गए हैं ... कितनी हरियाली और सुकून.... वरना अधिकतर MBA कॉलेज तो college कम शौपिंग मॉल ज्यादा लगते हैं वारंगल में २ साल के बहुत से खट्टे मीठे संस्मरण हैं जिन्हें सुनाता रहूँगा.....
गलती
फ़िर ख़ुद को उस से पराया बताया,
सुजा ली उसने आँखे रोते रोते ,
फ़िर मैं अपनी गलती पर पछताया
आकाश की तलाश में
घर से दूर रहने से ज्यादा दर्द भरा है मेरे लिए वहां से आना, क्योंकि ये दर्द हर बार झेलना पड़ता है जब भी घर से वापस आता हूँ मेरे अपने जिन्हें मेरे आने कि खुशी है लेकिन....... दुःख ज्यादा है कि सिर्फ़ इतने कम दिन के लिए ही आए हों........
उन्हें कैसे बताऊँ कि कैसे रहता हूँ दूर उन सब से, कितना याद करता हूँ अपनी मम्मी के हाथ के बने खाने को जब खाता हूँ सरदार जी के होटल की अधसिंकी रोटियां , कितना याद करता हूँ तुम्हारी गोद को जब रात को थक के लौटता हूँ ऑफिस से......और पापा आप भी तो याद आते हैं जब देखता हूँ किसी बच्चे को अपने पापा की ऊँगली पकड़े जाते हुए
आकाश का कोना ............. खो रहा हूँ अपने पैरों के नीचे की जमीन, आकाश की तलाश में
Tuesday, April 7, 2009
रात आधी खींच कर मेरी हथेली
एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने।
फ़ासला था कुछ हमारे बिस्तरों में
और चारों ओर दुनिया सो रही थी।
तारिकाऐं ही गगन की जानती हैं
जो दशा दिल की तुम्हारे हो रही थी।
मैं तुम्हारे पास होकर दूर तुमसे
अधजगा सा और अधसोया हुआ सा।
रात आधी खींच कर मेरी हथेली
एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने।
एक बिजली छू गई सहसा जगा मैं
कृष्णपक्षी चाँद निकला था गगन में।
इस तरह करवट पड़ी थी तुम कि आँसू
बह रहे थे इस नयन से उस नयन में।
मैं लगा दूँ आग इस संसार में
है प्यार जिसमें इस तरह असमर्थ कातर।
जानती हो उस समय क्या कर गुज़रने
के लिए था कर दिया तैयार तुमने!
रात आधी खींच कर मेरी हथेली
एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने।
प्रात ही की ओर को है रात चलती
औ उजाले में अंधेरा डूब जाता।
मंच ही पूरा बदलता कौन ऐसी
खूबियों के साथ परदे को उठाता।
एक चेहरा सा लगा तुमने लिया था
और मैंने था उतारा एक चेहरा।
वो निशा का स्वप्न मेरा था कि अपने
पर ग़ज़ब का था किया अधिकार तुमने।
रात आधी खींच कर मेरी हथेली
एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने।
और उतने फ़ासले पर आज तक
सौ यत्न करके भी न आये फिर कभी हम।
फिर न आया वक्त वैसा
फिर न मौका उस तरह काफिर न लौटा चाँद निर्मम।
और अपनी वेदना मैं क्या बताऊँ।
क्या नहीं ये पंक्तियाँ खुद बोलती हैं?
बुझ नहीं पाया अभी तक उस समय जो
रख दिया था हाथ पर अंगार तुमने।
रात आधी खींच कर मेरी हथेली
- बच्चन
Monday, March 30, 2009
Quote of the Day
------- Denis Waitley
This is very motivating quote, an inspiration for me. Every word has got the power inside it.
दूरी
माना के दूर हो मुझसे,
छू नहीं सकता तुम्हारी रेशमी जुल्फें,
नहीं भर सकता तुम्हे अपने आगोश मे,
लेकिन महसूस कर सकता हूँ तुम्हारी
साँसों कि खुशबू अपने बहुत करीब,
देख सकता हूँ तुम्हारी आँखों कि चमक
और दांतों कि धवल पंक्ति कि कौंध
जब भी चलती है पुरवाई,
लगता है तुमने अपनी जुल्फें लहराई हैं
जब भी कोयल बोलती है बाग़ में
लगता है तुमने मुझे आवाज लगाई,
काश एक बार तुम सामने आ जाओ,
बंद कर लूँगा तुम्हे अपनी पलकों मे,
दूर नहीं जाने दूंगा फिर कभी खुद से
बस एक बार तुम आ जाओ
मनोस्थिति
दूसरे ने आसमान की तरफ़ देखा और बोला "कहाँ नाव है ऐसा लग रहा है एक काला भेडिया है जो हमे देख कर भूख से जीभ लपलपा रहा है जल्दी घर चलो"