Tuesday, April 14, 2009

बचपन की यादें


बचपन के दिन भी क्या दिन थे
उड़ते फिरते तितली की तरह ....
इस गीत को सुन के शायद ऐसा कोई नही होगा जिसे अपने बचपन की याद न आती होगी और मन में एक बार फ़िर से छोटा बच्चा बननेकी हसरत न जागती हो तो आज गलती से हमने भी ये गीत सुना और याद गई अपने बचपन की एक घटना
बात तब की है जब हम सात साल के थे, औरों की तरह हमें भी गर्मी की छुट्टियाँ अपनी नानी जी के घर बिताने में बड़ा मज़ा आता था, इसके पीछे भी कुछ कारण थे, पहला कारण कि वहां कुछ भी शैतानी करो मम्मी की डांटका कोई डर नही था .......दूसरा कारण उनके घर में भैंसे थीं जिन्हें चराने ले जाने में बड़ा मजा आता था

ये घटना भी उसी से सम्बंधित है ......उस बार जब गर्मी की छुट्टी में नानी जी के घर गए तो उनके यहाँ एक नई भैंस आ गई थी तो अब सबके पास चराने के लिए अपनी अपनी भैंस थी.......

शाम का वक्त था और हमे भैंस चराने की सूझी..... उनके घर के सामने ही एक बड़ा तालाब था जो बेचारा सूरज की तेज़ गर्मी बर्दाश्त नही कर सका और सूखने के कगार पर आ गया था, इस कारण उस में कीचड की मात्रा अधिक हो गई थी

तो भैंस की जंजीर का छल्ला अपने हाथ में पहन के बड़ी शान से भैस को ले कर हम चल पड़े, पीछे से मामा के लड़के ने भैंस को एक डंडा मार दिया......भैंस ने आव देखा न ताव सीधे तालाब की तरफ़ भागी....और हम भैंस के साथ खींचते जा रहे थे.... भैंस ने तालाब के इस किनारे से एंट्री मारी और दूसरे किनारे से निकली..... इस यात्रा में भैंस ने हमे अच्छी खासी कीचड़ छठा दी, जैसे तैसे भैंस शांत हुई और हमे किसी तरह सब ने निकाला....इस यात्रा के बाद हम कीचड में पूरी तरह लिपट चुके थे और काले काले भूत बन गए थे.....

अब भी जब कभी उनके घर जाते हैं तो सोच कर बड़ी हँसी आती है.... मामी जी तो अब भी पूछ लेती हैं "भइया भैंस चराने नही ले जाओगे".....



1 comment:

  1. बचपन के दिन भी क्या दिन थे
    उड़ते फिरते तितली की तरह.....

    नानी का गाँव । जन्म भी ननिहाल में ही हुआ । पढ़ाई भी वही हुई । भैस भी चराई ।खूब मट्ठा भी पिया । मीठे की भेली चुराई । डंडें भी खाया । खूब दोस्त भी बनाए । सब के सब लफंगें। लफंगों की लिस्ट में नंबर वन भी आया । जिंदगी के सुनहले दिन ननिहाल में ही बीतें । आज फ़िर नानी का गाँव याद आया ....

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